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5:4

يَسْـَٔلُونَكَ مَاذَآ أُحِلَّ لَهُمْ قُلْ أُحِلَّ لَكُمُ ٱلطَّيِّبَٰتُ وَمَا عَلَّمْتُم مِّنَ ٱلْجَوَارِحِ مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُ ٱللَّهُ فَكُلُوا۟ مِمَّآ أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ وَٱذْكُرُوا۟ ٱسْمَ ٱللَّهِ عَلَيْهِ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلْحِسَابِ

Yasaloonaka matha ohilla lahum qul ohilla lakumu alttayyibatu wama AAallamtum mina aljawarihi mukallibeena tuAAallimoonahunna mimma AAallamakumu Allahu fakuloo mimma amsakna AAalaykum waothkuroo isma Allahi AAalayhi waittaqoo Allaha inna Allaha sareeAAu alhisabi

(ऐ रसूल) तुमसे लोग पूंछते हैं कि कौन (कौन) चीज़ उनके लिए हलाल की गयी है तुम (उनसे) कह दो कि तुम्हारे लिए पाकीज़ा चीजें हलाल की गयीं और शिकारी जानवर जो तुमने शिकार के लिए सधा रखें है और जो (तरीके) ख़ुदा ने तुम्हें बताये हैं उनमें के कुछ तुमने उन जानवरों को भी सिखाया हो तो ये शिकारी जानवर जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़ रखें उसको (बेताम्मुल) खाओ और (जानवर को छोंड़ते वक्त) ख़ुदा का नाम ले लिया करो और ख़ुदा से डरते रहो (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है
5:5

ٱلْيَوْمَ أُحِلَّ لَكُمُ ٱلطَّيِّبَٰتُ وَطَعَامُ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَٰبَ حِلٌّ لَّكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلٌّ لَّهُمْ وَٱلْمُحْصَنَٰتُ مِنَ ٱلْمُؤْمِنَٰتِ وَٱلْمُحْصَنَٰتُ مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَٰبَ مِن قَبْلِكُمْ إِذَآ ءَاتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَٰفِحِينَ وَلَا مُتَّخِذِىٓ أَخْدَانٍ وَمَن يَكْفُرْ بِٱلْإِيمَٰنِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُۥ وَهُوَ فِى ٱلْءَاخِرَةِ مِنَ ٱلْخَٰسِرِينَ

Alyawma ohilla lakumu alttayyibatu wataAAamu allatheena ootoo alkitaba hillun lakum wataAAamukum hillun lahum waalmuhsanatu mina almuminati waalmuhsanatu mina allatheena ootoo alkitaba min qablikum itha ataytumoohunna ojoorahunna muhsineena ghayra musafiheena wala muttakhithee akhdanin waman yakfur bialeemani faqad habita AAamaluhu wahuwa fee alakhirati mina alkhasireena

आज तमाम पाकीज़ा चीजें तुम्हारे लिए हलाल कर दी गयी हैं और अहले किताब की ख़ुश्क चीजें ग़ेहूं (वगैरह) तुम्हारे लिए हलाल हैं और तुम्हारी ख़ुश्क चीजें ग़ेहूं (वगैरह) उनके लिए हलाल हैं और आज़ाद पाक दामन औरतें और उन लोगों में की आज़ाद पाक दामन औरतें जिनको तुमसे पहले किताब दी जा चुकी है जब तुम उनको उनके मेहर दे दो (और) पाक दामिनी का इरादा करो न तो खुल्लम खुल्ला ज़िनाकारी का और न चोरी छिपे से आशनाई का और जिस शख्स ने ईमान से इन्कार किया तो उसका सब किया (धरा) अकारत हो गया और (तुल्फ़ तो ये है कि) आख़ेरत में भी वही घाटे में रहेगा
5:6

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا قُمْتُمْ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ فَٱغْسِلُوا۟ وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى ٱلْمَرَافِقِ وَٱمْسَحُوا۟ بِرُءُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى ٱلْكَعْبَيْنِ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَٱطَّهَّرُوا۟ وَإِن كُنتُم مَّرْضَىٰٓ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَآءَ أَحَدٌ مِّنكُم مِّنَ ٱلْغَآئِطِ أَوْ لَٰمَسْتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمْ تَجِدُوا۟ مَآءً فَتَيَمَّمُوا۟ صَعِيدًا طَيِّبًا فَٱمْسَحُوا۟ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ مَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍ وَلَٰكِن يُرِيدُ لِيُطَهِّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُۥ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

Ya ayyuha allatheena amanoo itha qumtum ila alssalati faighsiloo wujoohakum waaydiyakum ila almarafiqi waimsahoo biruoosikum waarjulakum ila alkaAAbayni wain kuntum junuban faittahharoo wain kuntum marda aw AAala safarin aw jaa ahadun minkum mina alghaiti aw lamastumu alnnisaa falam tajidoo maan fatayammamoo saAAeedan tayyiban faimsahoo biwujoohikum waaydeekum minhu ma yureedu Allahu liyajAAala AAalaykum min harajin walakin yureedu liyutahhirakum waliyutimma niAAmatahu AAalaykum laAAallakum tashkuroona

ऐ ईमानदारों जब तुम नमाज़ के लिये आमादा हो तो अपने मुंह और कोहनियों तक हाथ धो लिया करो और अपने सरों का और टखनों तक पॉवों का मसाह कर लिया करो और अगर तुम हालते जनाबत में हो तो तुम तहारत (ग़ुस्ल) कर लो (हॉ) और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से किसी को पैख़ाना निकल आए या औरतों से हमबिस्तरी की हो और तुमको पानी न मिल सके तो पाक ख़ाक से तैमूम कर लो यानि (दोनों हाथ मारकर) उससे अपने मुंह और अपने हाथों का मसा कर लो (देखो तो ख़ुदा ने कैसी आसानी कर दी) ख़ुदा तो ये चाहता ही नहीं कि तुम पर किसी तरह की तंगी करे बल्कि वो ये चाहता है कि पाक व पाकीज़ा कर दे और तुमपर अपनी नेअमते पूरी कर दे ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ
5:7

وَٱذْكُرُوا۟ نِعْمَةَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَمِيثَٰقَهُ ٱلَّذِى وَاثَقَكُم بِهِۦٓ إِذْ قُلْتُمْ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ

Waothkuroo niAAmata Allahi AAalaykum wameethaqahu allathee wathaqakum bihi ith qultum samiAAna waataAAna waittaqoo Allaha inna Allaha AAaleemun bithati alssudoori

और जो एहसानात ख़ुदा ने तुमपर किए हैं उनको और उस (एहद व पैमान) को याद करो जिसका तुमसे पक्का इक़रार ले चुका है जब तुमने कहा था कि हमने (एहकामे ख़ुदा को) सुना और दिल से मान लिया और ख़ुदा से डरते रहो क्योंकि इसमें ज़रा भी शक नहीं कि ख़ुदा दिलों के राज़ से भी बाख़बर है
5:8

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ كُونُوا۟ قَوَّٰمِينَ لِلَّهِ شُهَدَآءَ بِٱلْقِسْطِ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَـَٔانُ قَوْمٍ عَلَىٰٓ أَلَّا تَعْدِلُوا۟ ٱعْدِلُوا۟ هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَىٰ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِيرٌۢ بِمَا تَعْمَلُونَ

Ya ayyuha allatheena amanoo koonoo qawwameena lillahi shuhadaa bialqisti wala yajrimannakum shanaanu qawmin AAala alla taAAdiloo iAAdiloo huwa aqrabu lilttaqwa waittaqoo Allaha inna Allaha khabeerun bima taAAmaloona

ऐ ईमानदारों ख़ुदा (की ख़ुशनूदी) के लिए इन्साफ़ के साथ गवाही देने के लिए तैयार रहो और तुम्हें किसी क़बीले की अदावत इस जुर्म में न फॅसवा दे कि तुम नाइन्साफी करने लगो (ख़बरदार बल्कि) तुम (हर हाल में) इन्साफ़ करो यही परहेज़गारी से बहुत क़रीब है और ख़ुदा से डरो क्योंकि जो कुछ तुम करते हो (अच्छा या बुरा) ख़ुदा उसे ज़रूर जानता है
5:9

وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ عَظِيمٌ

WaAAada Allahu allatheena amanoo waAAamiloo alssalihati lahum maghfiratun waajrun AAatheemun

और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए ख़ुदा ने वायदा किया है कि उनके लिए (आख़िरत में) मग़फेरत और बड़ा सवाब है

وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَكَذَّبُوا۟ بِـَٔايَٰتِنَآ أُو۟لَٰٓئِكَ أَصْحَٰبُ ٱلْجَحِيمِ

Waallatheena kafaroo wakaththaboo biayatina olaika ashabu aljaheemi

और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया वह जहन्नुमी हैं (

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱذْكُرُوا۟ نِعْمَتَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ هَمَّ قَوْمٌ أَن يَبْسُطُوٓا۟ إِلَيْكُمْ أَيْدِيَهُمْ فَكَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُؤْمِنُونَ

Ya ayyuha allatheena amanoo othkuroo niAAmata Allahi AAalaykum ith hamma qawmun an yabsutoo ilaykum aydiyahum fakaffa aydiyahum AAankum waittaqoo Allaha waAAala Allahi falyatawakkali almuminoona

ऐ ईमानदारों ख़ुदा ने जो एहसानात तुमपर किए हैं उनको याद करो और ख़ूसूसन जब एक क़बीले ने तुम पर दस्त दराज़ी का इरादा किया था तो ख़ुदा ने उनके हाथों को तुम तक पहुंचने से रोक दिया और ख़ुदा से डरते रहो और मोमिनीन को ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए

وَلَقَدْ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَٰقَ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ وَبَعَثْنَا مِنْهُمُ ٱثْنَىْ عَشَرَ نَقِيبًا وَقَالَ ٱللَّهُ إِنِّى مَعَكُمْ لَئِنْ أَقَمْتُمُ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَيْتُمُ ٱلزَّكَوٰةَ وَءَامَنتُم بِرُسُلِى وَعَزَّرْتُمُوهُمْ وَأَقْرَضْتُمُ ٱللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا لَّأُكَفِّرَنَّ عَنكُمْ سَيِّـَٔاتِكُمْ وَلَأُدْخِلَنَّكُمْ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ فَمَن كَفَرَ بَعْدَ ذَٰلِكَ مِنكُمْ فَقَدْ ضَلَّ سَوَآءَ ٱلسَّبِيلِ

Walaqad akhatha Allahu meethaqa banee israeela wabaAAathna minhumu ithnay AAashara naqeeban waqala Allahu innee maAAakum lain aqamtumu alssalata waataytumu alzzakata waamantum birusulee waAAazzartumoohum waaqradtumu Allaha qardan hasanan laokaffiranna AAankum sayyiatikum walaodkhilannakum jannatin tajree min tahtiha alanharu faman kafara baAAda thalika minkum faqad dalla sawaa alssabeeli

और इसमें भी शक नहीं कि ख़ुदा ने बनी इसराईल से (भी ईमान का) एहद व पैमान ले लिया था और हम (ख़ुदा) ने इनमें के बारह सरदार उनपर मुक़र्रर किए और ख़ुदा ने बनी इसराईल से फ़रमाया था कि मैं तो यक़ीनन तुम्हारे साथ हूं अगर तुम भी पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते और ज़कात देते रहो और हमारे पैग़म्बरों पर ईमान लाओ और उनकी मदद करते रहो और ख़ुदा (की ख़ुशनूदी के वास्ते लोगों को) क़र्जे हसना देते रहो तो मैं भी तुम्हारे गुनाह तुमसे ज़रूर दूर करूंगा और तुमको बेहिश्त के उन (हरे भरे ) बाग़ों में जा पहुंचाऊॅगा जिनके (दरख्तों के) नीचे नहरें जारी हैं फिर तुममें से जो शख्स इसके बाद भी इन्कार करे तो यक़ीनन वह राहे रास्त से भटक गया

فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَٰقَهُمْ لَعَنَّٰهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْ قَٰسِيَةً يُحَرِّفُونَ ٱلْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِۦ وَنَسُوا۟ حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُوا۟ بِهِۦ وَلَا تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلَىٰ خَآئِنَةٍ مِّنْهُمْ إِلَّا قَلِيلًا مِّنْهُمْ فَٱعْفُ عَنْهُمْ وَٱصْفَحْ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُحْسِنِينَ

Fabima naqdihim meethaqahum laAAannahum wajaAAalna quloobahum qasiyatan yuharrifoona alkalima AAan mawadiAAihi wanasoo haththan mimma thukkiroo bihi wala tazalu tattaliAAu AAala khainatin minhum illa qaleelan minhum faoAAfu AAanhum waisfah inna Allaha yuhibbu almuhsineena

पस हमने उनकीे एहद शिकनी की वजह से उनपर लानत की और उनके दिलों को (गोया) हमने ख़ुद सख्त बना दिया कि (हमारे) कलमात को उनके असली मायनों से बदल कर दूसरे मायनो में इस्तेमाल करते हैं और जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा भुला बैठे और (ऐ रसूल) अब तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा एक न एक की ख्यानत पर बराबर मुत्तेला होते रहते हो तो तुम उन (के क़सूर) को माफ़ कर दो और (उनसे) दरगुज़र करो (क्योंकि) ख़ुदा एहसान करने वालों को ज़रूर दोस्त रखता है

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