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قَدْ مَكَرَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَأَتَى ٱللَّهُ بُنْيَٰنَهُم مِّنَ ٱلْقَوَاعِدِ فَخَرَّ عَلَيْهِمُ ٱلسَّقْفُ مِن فَوْقِهِمْ وَأَتَىٰهُمُ ٱلْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ
Qad makara allatheena min qablihim faata Allahu bunyanahum mina alqawaAAidi fakharra AAalayhimu alssaqfu min fawqihim waatahumu alAAathabu min haythu la yashAAuroona
जो उनसे पहले गुज़र है वे भी मक्कारियाँ कर चुके है। फिर अल्लाह उनके भवन पर नीवों की ओर से आया और छत उनपर उनके ऊपर से आ गिरी और ऐसे रुख़ से उनपर यातना आई जिसका उन्हें एहसास तक न था
ثُمَّ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ يُخْزِيهِمْ وَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَآءِىَ ٱلَّذِينَ كُنتُمْ تُشَٰٓقُّونَ فِيهِمْ قَالَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْعِلْمَ إِنَّ ٱلْخِزْىَ ٱلْيَوْمَ وَٱلسُّوٓءَ عَلَى ٱلْكَٰفِرِينَ
Thumma yawma alqiyamati yukhzeehim wayaqoolu ayna shurakaiya allatheena kuntum tushaqqoona feehim qala allatheena ootoo alAAilma inna alkhizya alyawma waalssooa AAala alkafireena
फिर क़ियामत के दिन अल्लाह उन्हें अपमानित करेगा और कहेगा, "कहाँ है मेरे वे साझीदार, जिनके लिए तुम लड़ते-झगड़ते थे?" जिन्हें ज्ञान प्राप्त था वे कहेंगे, "निश्चय ही आज रुसवाई और ख़राबी है इनकार करनेवालों के लिए।"
ٱلَّذِينَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ ظَالِمِىٓ أَنفُسِهِمْ فَأَلْقَوُا۟ ٱلسَّلَمَ مَا كُنَّا نَعْمَلُ مِن سُوٓءٍۭ بَلَىٰٓ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌۢ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
Allatheena tatawaffahumu almalaikatu thalimee anfusihim faalqawoo alssalama ma kunna naAAmalu min sooin bala inna Allaha AAaleemun bima kuntum taAAmaloona
जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते है कि वे अपने आप पर अत्याचार कर रहे होते है, तब आज्ञाकारी एवं वशीभूत होकर आ झुकते है कि "हम तो कोई बुराई नहीं करते थे।" "नहीं, बल्कि अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम करते रहे हो
فَٱدْخُلُوٓا۟ أَبْوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَا فَلَبِئْسَ مَثْوَى ٱلْمُتَكَبِّرِينَ
Faodkhuloo abwaba jahannama khalideena feeha falabisa mathwa almutakabbireena
तो अब जहन्नम के द्वारों में, उसमें सदैव रहने के लिए प्रवेश करो। अतः निश्चय ही बहुत ही बुरा ठिकाना है यह अहंकारियों का।"
وَقِيلَ لِلَّذِينَ ٱتَّقَوْا۟ مَاذَآ أَنزَلَ رَبُّكُمْ قَالُوا۟ خَيْرًا لِّلَّذِينَ أَحْسَنُوا۟ فِى هَٰذِهِ ٱلدُّنْيَا حَسَنَةٌ وَلَدَارُ ٱلْءَاخِرَةِ خَيْرٌ وَلَنِعْمَ دَارُ ٱلْمُتَّقِينَ
Waqeela lillatheena ittaqaw matha anzala rabbukum qaloo khayran lillatheena ahsanoo fee hathihi alddunya hasanatun waladaru alakhirati khayrun walaniAAma daru almuttaqeena
दूसरी ओर जो डर रखनेवाले है उनसे कहा जाता है, "तुम्हारे रब ने क्या अवतरित किया?" वे कहते है, "जो सबसे उत्तम है।" जिन लोगों ने भलाई की उनकी इस दुनिया में भी अच्छी हालत है और आख़िरत का घर तो अच्छा है ही। और क्या ही अच्छा घर है डर रखनेवालों का!
جَنَّٰتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ لَهُمْ فِيهَا مَا يَشَآءُونَ كَذَٰلِكَ يَجْزِى ٱللَّهُ ٱلْمُتَّقِينَ
Jannatu AAadnin yadkhuloonaha tajree min tahtiha alanharu lahum feeha ma yashaoona kathalika yajzee Allahu almuttaqeena
सदैव रहने के बाग़ जिनमें वे प्रवेश करेंगे, उनके नीचे नहरें बह रहीं होंगी, उनके लिए वहाँ वह सब कुछ संचित होगा, जो वे चाहे। अल्लाह डर रखनेवालों को ऐसा ही प्रतिदान प्रदान करता है
ٱلَّذِينَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ طَيِّبِينَ يَقُولُونَ سَلَٰمٌ عَلَيْكُمُ ٱدْخُلُوا۟ ٱلْجَنَّةَ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
Allatheena tatawaffahumu almalaikatu tayyibeena yaqooloona salamun AAalaykumu odkhuloo aljannata bima kuntum taAAmaloona
जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते है कि वे पाक और नेक होते है, वे कहते है, "तुम पर सलाम हो! प्रवेश करो जन्नत में उसके बदले में जो कुछ तुम करते रहे हो।"
هَلْ يَنظُرُونَ إِلَّآ أَن تَأْتِيَهُمُ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ أَوْ يَأْتِىَ أَمْرُ رَبِّكَ كَذَٰلِكَ فَعَلَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَٰكِن كَانُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
Hal yanthuroona illa an tatiyahumu almalaikatu aw yatiya amru rabbika kathalika faAAala allatheena min qablihim wama thalamahumu Allahu walakin kanoo anfusahum yathlimoona
क्या अब वे इसी की प्रतीक्षा कर रहे है कि फ़रिश्ते उनके पास आ पहुँचे या तेरे रब का आदेश ही आ जाए? ऐसा ही उन लोगो ने भी किया, जो इनसे पहले थे। अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, किन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करते रहे
فَأَصَابَهُمْ سَيِّـَٔاتُ مَا عَمِلُوا۟ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا۟ بِهِۦ يَسْتَهْزِءُونَ
Faasabahum sayyiatu ma AAamiloo wahaqa bihim ma kanoo bihi yastahzioona
अन्ततः उनकी करतूतों की बुराइयाँ उनपर आ पड़ी, और जिसका उपहास वे कहते थे, उसी ने उन्हें आ घेरा
وَقَالَ ٱلَّذِينَ أَشْرَكُوا۟ لَوْ شَآءَ ٱللَّهُ مَا عَبَدْنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَىْءٍ نَّحْنُ وَلَآ ءَابَآؤُنَا وَلَا حَرَّمْنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَىْءٍ كَذَٰلِكَ فَعَلَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَهَلْ عَلَى ٱلرُّسُلِ إِلَّا ٱلْبَلَٰغُ ٱلْمُبِينُ
Waqala allatheena ashrakoo law shaa Allahu ma AAabadna min doonihi min shayin nahnu wala abaona wala harramna min doonihi min shayin kathalika faAAala allatheena min qablihim fahal AAala alrrusuli illa albalaghu almubeenu
शिर्क करनेवालों का कहना है, "यदि अल्लाह चाहता तो उससे हटकर किसी चीज़ की न हम बन्दगी करते और न हमारे बाप-दादा ही और न हम उसके बिना किसी चीज़ को अवैध ठहराते।" उनसे पहले के लोगों ने भी ऐसा ही किया। तो क्या साफ़-साफ़ सन्देश पहुँचा देने के सिवा रसूलों पर कोई और भी ज़िम्मेदारी है?
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